Maihar Mata - Maa Sharda's Temple

मैहर का मतलब है मां का हार


मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है

ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। माना जाता है कि यहां मां का हार गिरा था। हालांकि, सतना का मैहर मंदिर शक्ति पीठ नहीं है। फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहां सालों से माता के दर्शन के लिए भक्तों का रेला लगा रहता है।

522 ईसा पूर्व को चतुर्दशी के दिन नृपल देव ने सामवेदी की स्थापना की थी। तभी से त्रिकूट पर्वत में पूजा अर्चना का दौर शुरू हुआ। इस मंदिर की पवित्रता का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी भी आल्हा माँ शारदा की पूजा करने सुबह पहुँचते हैं।

माँ शारदा की प्रतिमा के ठीक नीचे के पढ़े जा सके शिलालेख भी कई पहेलियों को समेटे हुए हैं। सन्‌ 1922 में जैन दर्शनार्थियों की प्रेरणा से तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने शारदा मंदिर परिसर में जीव बलि को प्रतिबंधित कर दिया था।

ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस तथ्य का प्रमाण प्राप्त होता है कि सन्‌ 539 (522 .पू.) चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नृपलदेव ने सामवेदी देवी की स्थापना की थी। प्रसिद्ध इतिहासविद् . कनिघम द्वारा माँ शारदा मंदिर का काफी अध्ययन किया गया है। मैहर स्थित जन सूचना केन्द्र के प्रभारी पंडित मोहनलाल द्विवेदी शिलालेख के हवाले से बताते हैं कि कनिघम के प्रतीत होने वाले 9वीं 10वीं सदी के शिलालेख की लिपि पढ़े जाने के कारण अभी भी रहस्य बने हुए हैं।

चौतरफा हैं प्राचीन धरोहरें : मैहर केवल शारदा मंदिर के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि इसके चारों ओर प्राचीन धरोहरें बिखरी पड़ी हैं। मंदिर के ठीक पीछे इतिहास के दो प्रसिद्ध योद्धाओं देवी भक्त आल्हा- ऊदल के अखाड़े हैं तथा यहीं एक तालाब और भव्य मंदिर है जिसमें अमरत्व का वरदान प्राप्त आल्हा की तलवार उसी की विशाल प्रतिमा के हाथ में थमाई गई है।


आज भी आल्हा करते हैं पहले श्रृंगार : मैहर मंदिर के महंत पंडित देवी प्रसाद बताते हैं कि अभी भी माँ का पहला श्रृंगार आल्हा ही करते हैं और जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है। इस रहस्य को सुलझाने वैज्ञानिकों की टीम भी डेरा जमा चुकी है लेकिन रहस्य अभी भी बरकरार है।

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